प्रिय हो तुम
ठीक वैसे
जैसे दिसंबर की सर्दियों में
धूप प्रिय होती है सभी को
और मैं सूरजमुखी
तुम्हारी जरूरत है
ठीक वैसे
जैसे चांदनी की होती है
रात में खिलने वालों फूलों को
और मैं रातरानी
कहो प्रिय
मैं फूल ही रहूं या
बन जाउं पपीहा या चकोर
या दे दूं जान
बनकर पतंगा.......
कह भी दो कि जानते हो तुम भी
प्यार में बस नहीं होता किसी का.......
तस्वीर--जो मेरे कैमरे को पसंद आई
bhaut hi acchi....
ReplyDeleteप्यार में बस नहीं होता किसी का..
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण...
.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार अकलमंद ऐसे दुनिया में तबाही करते हैं . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteप्रियवर को सुन्दर उपमा से संजोया है,सुन्दर प्रस्तुतीकरण.
ReplyDeleteप्रेम की गहन अनुभूति लिए सुन्दर कविता..
ReplyDeleteऔर मैं रातरानी
ReplyDeleteकहो प्रिय
मैं फूल ही रहूं या
बन जाउं पपीहा या चकोर..बहुत ही सुंदर !!