Monday, February 25, 2013

आ भी जा.....



नींद की लहरों पर अरमानों की नाव पार उतरना ही चाहती थी कि एक तेज हि‍लोरे ने सब कुछ पलट दिया...
क्‍या हासि‍ल है जिंदगी तुम्‍हें कि खुली आंखों के ख्‍वाब चकनाचूर करने के बाद नींद में भी इतनी बेदर्दी.....
न पूछेगा कोई उदास रातों और रोईं आखों का सबब.......कि कुछ नसीब कम मेहरबां है और उन्‍हें कोई कद्र नहीं उनकी ....जि‍से कोई चाहता हो नमक से भी ज्‍यादा.....
शापि‍त है...... कि चांद को ग्रहण लगेगा ही और प्रेम करने वाला हमेशा रहेगा तन्‍हा.........
आ भी जा..आ भी जा...ऐ सुबह आ भी जा......रात को कर वि‍दा..दि‍लरूबा आ भी जा...

तस्‍वीर--साभार गूगल

8 comments:

  1. सुंदर रचना ...!!
    शुभकामनायें ...!!

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  2. न पूछेगा कोई उदास रातों और रोईं आखों का सबब.......कि कुछ नसीब कम मेहरबां है और उन्‍हें कोई कद्र नहीं उनकी ....जि‍से कोई चाहता हो नमक से भी ज्‍यादा.....

    दर्द को बहुत गहरे से महसूस कराती कविता...बहुत अच्छी लगी आपकी कविता..
    शुभकामनाएँ!
    सारिका मुकेश

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  3. भावपूर्ण अभिव्यक्ति | आभार

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  4. बढ़िया प्रस्तुति |
    आभार आदरेया ||

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  5. बहुत गजब बहुत अच्छी रचना
    आज की मेरी नई रचना

    ये कैसी मोहब्बत है

    खुशबू

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  6. बढ़िया प्रस्तुति...congratulations..

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  7. जब वो आयेगा तब ये ना रहेगा ये दर्द ना ये आंसू ।
    क्या फिर पूछ पायेंगी ,

    काहे अब तुम आये हो ........

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