Friday, February 22, 2013

काश ! तुम एक चरवाहे होते.....



काश !
तुम एक चरवाहे होते
अपनी भेड़-बकरि‍यां ले
जंगल-जंगल घूमते

जहां होती
मीठे पानी की नदी
और दूर तक
हरि‍ति‍मा

तुम जाकर ठहर जाते वहीं
ढूंढ लेते कोई ठांव
कदंब न सही
पीपल या वट ही सही

भरी दोपहरी
जब सुस्‍ताते सब
तुम भी छेड़ देते
एक मीठी तान

पानी की गगरि‍या
राह में पटक
मैं दौड़ी चली जाती
तुम बोलते..मैं सुनती
तुम्‍हें देखा करती

अच्‍छा नहीं लगता
घेरे रहती हैं गोपि‍यां तुम्‍हें
मैं राधा बनना चाहती हूं
पर कृष्‍ण न बनो तुम

सुनो
तुम चरवाहे ही बन जाओ
मैं भी पाल लूंगी
कुछ बतखें.....

साभार--गूगल

12 comments:

  1. सटीक प्रस्तुति ||
    छलिया से छल-
    आभार आदरेया ||

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  2. सुनो
    तुम चरवाहे ही बन जाओ
    मैं भी पाल लूंगी
    कुछ बतखें.....waah badi acchi khawahish...sundar rachna...

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  3. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

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  4. मन को भाई इसके अंदर की शब्दों की परछाई !

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  5. मैं भी पाल लूंगी बत्‍तखें.......बहुत स्‍पर्श्‍य।

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  6. प्रकृति और प्रेम दोनों का सानिध्य सुंदर अनुभूति है.

    सुंदर कविता.

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  7. शब्दों का बहुत सुन्दर प्रयोग

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  8. अजीब अजीब ख्वाहिशें ... सुंदर प्रस्तुति

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  9. पानी की गगरि‍या
    राह में पटक
    मैं दौड़ी चली जाती
    तुम बोलते..मैं सुनती
    तुम्‍हें देखा करती

    अच्‍छा नहीं लगता
    घेरे रहती हैं गोपि‍यां तुम्‍हें
    मैं राधा बनना चाहती हूं
    पर कृष्‍ण न बनो तुम
    .... सुंदर प्रस्तुति

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