मुद़दत बात गूंजी है
कमरे में इतनी सिसकियां
चलो, जख्मों का सिलसिला
अब तलक बरकरार तो है
इन अश्कों से मुझको
नहीं है कोई शिकवा
उल्फत न सही, उनका हमसे
किसी बात पे तकरार तो है
बहुत सादगी से कहते हैं
आज पास हो, कल बढ़ जाएंगी दूरियां
था अब तलक हमसे कोई रिश्ता
इस बात का इकरार तो है.....
8 comments:
प्रभावशाली !!
जारी रहें !!
आर्यावर्त बधाई !!
जीने के लिए यह अहसास ही काफ़ी है..बहुत सुन्दर और भावपूर्ण...
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ
sundar prastuti,samvednaon se bahi,इन अश्कों से मुझको
नहीं है कोई शिकवा
उल्फत न सही, उनका हमसे
किसी बात पे तकरार तो है
अहसास ही अहसास ...बहुत खूब
उसके वादे का अब भी यकीन करता हूँ
हजार बार जिसे आजमा कर देख लिया,,,,
recent post: वह सुनयना थी,
रिश्ते अजर है अमर है ..
दूरियां बढ़ जाने से रिश्ते नहीं टूटते ... लोगों की सोच बदल जाती है।
उत्तम रचना। बधाई स्वीकार करें। :)
recent poem : मायने बदल गऐ
बहुत सादगी से कहते हैं
आज पास हो, कल बढ़ जाएंगी दूरियां
था अब तलक हमसे कोई रिश्ता
इस बात का इकरार तो है.बहुत सुंदर लिखा है ये
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