Saturday, January 12, 2013

भ्रम टूटा है.....



कहीं कुछ भी नहीं बदला
बस एक
भ्रम टूटा है
और आंखों का कोर
तब से भीगा जा रहा है....

ये आंसू भी तुम्‍हारी तरह
दगाबाज हैं
बि‍न बुलाए आते हैं
और
न चाहने पर भी
रि‍सते रहते हैं
लुप्‍त नदी की तरह
धरा और चट़टान का
सीना चीरकर...

कुछ दि‍न
और
बस कुछ दि‍न
प्रेम न सही, भ्रम ही होता
खाली मुट़ठि‍यों में
अहसासों की छांव तो होती
यादों में
एक नाम तो होता.....

छलि‍ए
दो मुस्‍कान दि‍ए थे तुमने
अब आंचल भर
आंसू के फूल दि‍ए हैं
भुला सकूं
इतने हल्‍के नहीं उतरे थे तुम

कहो तुम्‍हीं
क्‍या करूं उन आवाजों का
जो दि‍नरात
गूंजते हैं कानों में
छलि‍या तू...दगाबाज तू...
और
मेरा प्‍यार भी तो है तू....

7 comments:

Vinay said...

अति सुंदर कृति
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नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें

Shalini kaushik said...

बहुत सही सार्थक अभिव्यक्ति भारत सदा ही दुश्मनों पे हावी रहेगा .
@ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

तेरा दगा, मेरी दुआ!

--
थर्टीन रेज़ोल्युशंस

ओंकारनाथ मिश्र said...

छलि‍ए
दो मुस्‍कान दि‍ए थे तुमने
अब आंचल भर
आंसू के फूल दि‍ए हैं
भुला सकूं
इतने हल्‍के नहीं उतरे थे तुम

सुन्दर अभिव्यक्ति.

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह...
प्रेम भी...उलाहना भी..
बहुत सुन्दर
अनु

Unknown said...

मर्म को छूने वालो कविता। बहुत सुन्दर अहसास की कविता।

डॉ एल के शर्मा said...

कहो तुम्‍हीं
क्‍या करूं उन आवाजों का
जो दि‍नरात
गूंजते हैं कानों में
छलि‍या तू...दगाबाज तू...
और
मेरा प्‍यार भी तो है तू....मर्मस्पर्शी