Tuesday, December 11, 2012

सर्द रात की बरसात के दो पहलू.....




दोपहर से हो रही बरसात....कहर ढाएगी आज की रात
जि‍न्‍हें मय़सर है गर्म लि‍बास...उनकी नहीं कोई बात
जि‍नका घर है खुला आकाश..न कंबल न आग का साथ
करेंगे शुक्रि‍या परवरदि‍गार का...जो कट जाएगी आज की रात




देखो....दौड़कर आया हवा का एक झोंका.....ना..ना....मुझसे न लि‍पटो तुम...एक तो सर्दी की रात....उस पर ये मुई बरसात.....हवा के थपेड़े से कांप जा रहा है बदन....कोहरे से धुआं-धुआं है फि‍जां और यादों के गलि‍यारे से आती एक भूली-बि‍सरी आवाज.....ये सर्द रातें इतनी लंबी क्‍यों होती हैं.....और सूनी-सूनी भी......पेड़ से झड़ती पत्‍ति‍यों पर होकर सवार जब बूदें खि‍ड़की की कांच पर अटक जाती हैं....तो मन के कपाट चरचराहट भरी आवाज के साथ ऐसे खुलते हैं....जैसे बरसों के बाद खुलता है कोई पुराना दरवाजा......मौसम की एक अंगड़ाई मन के तार क्‍यों छेड़ जाती है....कब से ढूंढ रही हूं इनका जवाब....मि‍लता ही नहीं...आज बारि‍श ने बर्फ का लि‍हाफ पहन फि‍र खींच लि‍या मुझे अतीत के आंगन में.....चलो..एक सफर यह भी....

5 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत उम्दा प्रस्तुति ....

recent post: रूप संवारा नहीं,,,

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,बधाई,

recent post: रूप संवारा नहीं,,,

अरुन अनन्त said...

वाह बेहद उम्दा प्रस्तुति

अरुन शर्मा

ओंकारनाथ मिश्र said...

दोपहर से हो रही बरसात....कहर ढाएगी आज की रात
जि‍न्‍हें मय़सर है गर्म लि‍बास...उनकी नहीं कोई बात
जि‍नका घर है खुला आकाश..न कंबल न आग का साथ
करेंगे शुक्रि‍या परवरदि‍गार का...जो कट जाएगी आज की रात

सच में कई ऐसी ज़िन्दगियाँ है जिनके लिए ऐसी सर्द रात जीवन और मरण की चुनौती होती है. सुन्दर रचना.

vandana gupta said...

संवेदनशील