Monday, December 10, 2012

बस.....यूं ही

खि‍ली-खि‍ली धूप है
उजली-उजली सी सुबह मुस्‍करा रही है

देख ऐसा लगता है
कोई गुजरी सुबह याद आ रही है

धूप गुनगुना रही है
गीत गुलाबी ठंढ के गा रही है

देखो....हम-तुम सी ही ये सुबह
एक-दूजे को देख मुस्‍करा रही है.....

6 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

प्यारी...गुनगुनी सी रचना..

अनु

अरुन अनन्त said...

हेमंत ऋतु को दर्शाती सुन्दर प्रस्तुति
अरुन शर्मा
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Unknown said...

accha kiya aap ne mushkurane ka nya andaz sikha diya,******^^^^^^***** देखो....हम-तुम सी ही ये सुबह
एक-दूजे को देख मुस्‍करा रही है,bahut subdar

Anonymous said...

बेहतर लेखन !!!

दिगम्बर नासवा said...

आप मुस्कुराएंगे तो धूप तो स्वत ही मुस्कुराएगी ... सुन्दर लिखा है ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह ,,, बहुत उम्दा,हेमन्त ऋतू में ठण्ड का अहसास दिलाती लाजबाब रचना....बधाई,रश्मी जी,

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