Sunday, November 4, 2012

बहलाते हो क्‍यों

मुझको झूठी बातों से बहलाते हो क्‍यों
आशाओं का झूठा दीप जलाते हो क्‍यों।।

करो यकीं, मुझे तुमसे कोई शि‍कवा नहीं
फि‍र इनकार-ए-मोहब्‍बत से घबराते हो क्‍यों।।

मेरी न सही, कि‍सी की मोहब्‍बत तो रास आई तुम्‍हें
फि‍र मेरे बि‍खरने पर आंसू बहाते हो क्‍यों......।।

10 comments:

  1. इस तरह से मुझे बर्बाद किया है ,,,,,,, उसने,
    कि गया कुछ भी नही,और रहा कुछ भी नही,,,,,

    RECENT POST : समय की पुकार है,

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  2. dilenadan ..jo thahra isiliye aanshu bhata hai ....bahut acchi prastuti ....rashmi jee...

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  3. बहुत खूब ....उम्दा :)

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  4. बहुत खूब ....उम्दा :)

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  5. बहुत खूब सुन्दर रचना

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  6. बहुत सुंदर अच्छी रचना
    मुझको झूठी बातों से बहलाते हो क्‍यों
    आशाओं का झूठा दीप जलाते हो क्‍यों।।
    Recent Post"Khada Hai'

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