Wednesday, October 17, 2012
खूबसूरत शाम
अभी-अभी देखा..........लालिमा लिए सतरंगी सा आसमान.......डूबने को आतुर सूरज अपनी पीछे रंग-बिरंगी छटा कुछ ऐसे छोड़ जा रहा है जैसे कोई ....होली के दिन बदन के सारे रंग छुड़ाने के पहले एक बार अपने सारे रंगों से सामने वाले को रंगकर देखना चाहता है कि........कैसा लगेगा कई रंगों का मिश्रण.....कुछ ऐसा ही तो कर रहा है इन दिनों सूरज.............हर शाम मैं देखती हूं डूबता सूरज.......लाल, पीला, नारंगी, सफेद और हल्का नीलापन लिए आकाश.......जी चाहता है...उड़ जाउं आकाश में...........और समेट लूं हाथों में सारा रंग........और उड़ेल दूं उन पर......जो दिन गुजरने का मातम बनाते हैं......आखिर ढलेगी तब न चांदनी बिखरेगी......
...जी चाहता है...उड़ जाउं आकाश में...........और समेट लूं हाथों में सारा रंग........और उड़ेल दूं उन पर......जो दिन गुजरने का मातम बनाते हैं......आखिर ढलेगी तब न चांदनी बिखरेगी......
ReplyDeleteरचनाकार रश्मि at 7:12 PM
सुन्दर रचना |
ReplyDeleteनई पोस्ट:- ठूंठ