Saturday, October 13, 2012

जी चाहता है....

ऐसे न आया करो रोज तुम मेरे ख्‍वाबों में।
इन खूबसूरत ख्‍वाबों को हकीकत बनाने को जी चाहता है।।

बि‍न तुम्‍हारे अब वक्‍त कटता ही नहीं।
तुम्‍हें दि‍ल की हर बात बताने को जी चाहता है।।

जाने ये कैसी चाह है जो हर पल कहती है मुझसे।
कि‍ पास आओ तुम्‍हारी बाहों में समाने को जी चाहता है।।

कैसे कहूं ''झरना'' उनसे कि‍ समझ लो दि‍ल की बातें।
कि‍सी और के न हो सको, इतना अपना बनाने को जी चाहता है।।

4 comments:

  1. रश्मि जी बेहद उम्दा प्रस्तुति

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  2. बहुत सुंदर प्रेममय प्रस्तुति |

    इस समूहिक ब्लॉग में आए और हमसे जुड़ें :- काव्य का संसार

    यहाँ भी आयें:- ओ कलम !!

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  3. बहुत सुन्दर रचना

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  4. अन्दर तक झकझोरती बेहतरीन रचना.

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