1.धूप भी लेती है यूं अंगड़ाई
जैसे बादलों के पर्दे से कौंध छाई......
2.बादलों से करोगे मुहब्बत तो तरसते रह जाओगे
इंतजार करते रहोगे इधर...वो बरस जाएंगे उधर
3.धूप मुट़ठियों में कहां समाती है
खुली हथेली में बस पल भर को ठहर जाती हैं
कच्ची धूप को पसंद करते हैं सब मगर
पक्की धूप से दुनिया मुंह मोड़ जाती हैं....
धूप मुट़ठियों में कहां समाती है
ReplyDeleteखुली हथेली में बस पल भर को ठहर जाती हैं
कच्ची धूप को पसंद करते हैं सब मगर
पक्की धूप से दुनिया मुंह मोड़ जाती हैं....
वाह बहुत खूबशूरत सुंदर अभिव्यक्ति,,,,,,
MY RECENT POST: माँ,,,
बहुत सुंदर चित्रण |
ReplyDeleteनई पोस्ट:-ओ कलम !!
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या बात
बादलों से करोगे मुहब्बत तो तरसते रह जाओगे
इंतजार करते रहोगे इधर...वो बरस जाएंगे उधर
सच्चाई है,
रश्मि जी सरल शब्दों में गहन भाव व्यक्त करती प्रभावशाली रचना खास कर ये पंक्तियाँ तो उम्दा हैं
ReplyDeleteधूप मुट़ठियों में कहां समाती है
खुली हथेली में बस पल भर को ठहर जाती हैं
कच्ची धूप को पसंद करते हैं सब मगर
पक्की धूप से दुनिया मुंह मोड़ जाती हैं....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति रश्मि जी -बहुत सुंदर भाव
ReplyDeleteनाज़ुक पाँखुरी -सी ये छोटी कविताएँ मन को छू गई । बहुत बधाई रश्मि जी ।
ReplyDeleteरामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
वाह,.... बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट ।
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