Thursday, October 11, 2012

धूप और बादल.....


1.धूप भी लेती है यूं अंगड़ाई
जैसे बादलों के पर्दे से कौंध छाई......


2.बादलों से करोगे मुहब्‍बत तो तरसते रह जाओगे
इंतजार करते रहोगे इधर...वो बरस जाएंगे उधर


3.धूप मुट़ठि‍यों में कहां समाती है
खुली हथेली में बस पल भर को ठहर जाती हैं
कच्‍ची धूप को पसंद करते हैं सब मगर
पक्‍की धूप से दुनि‍या मुंह मोड़ जाती हैं....

7 comments:

  1. धूप मुट़ठि‍यों में कहां समाती है
    खुली हथेली में बस पल भर को ठहर जाती हैं
    कच्‍ची धूप को पसंद करते हैं सब मगर
    पक्‍की धूप से दुनि‍या मुंह मोड़ जाती हैं....

    वाह बहुत खूबशूरत सुंदर अभिव्यक्ति,,,,,,

    MY RECENT POST: माँ,,,

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  2. बहुत सुंदर चित्रण |

    नई पोस्ट:-ओ कलम !!

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  3. बहुत सुंदर रचना
    क्या बात

    बादलों से करोगे मुहब्‍बत तो तरसते रह जाओगे
    इंतजार करते रहोगे इधर...वो बरस जाएंगे उधर

    सच्चाई है,


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  4. रश्मि जी सरल शब्दों में गहन भाव व्यक्त करती प्रभावशाली रचना खास कर ये पंक्तियाँ तो उम्दा हैं
    धूप मुट़ठि‍यों में कहां समाती है
    खुली हथेली में बस पल भर को ठहर जाती हैं
    कच्‍ची धूप को पसंद करते हैं सब मगर
    पक्‍की धूप से दुनि‍या मुंह मोड़ जाती हैं....

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति रश्मि जी -बहुत सुंदर भाव

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  6. नाज़ुक पाँखुरी -सी ये छोटी कविताएँ मन को छू गई । बहुत बधाई रश्मि जी ।
    रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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  7. वाह,.... बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट ।

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