Friday, August 3, 2012

औरत के आंसू

लेकर तुम्‍हारी आंखों से
आंसू का एक कतरा
मि‍ला दूं अपने
उन आंसुओं में
जो सदि‍यों से बह रहे हैं
और जिन्‍हें
सदि‍यों तक बहना है
अनवरत
क्‍योंकि....ये हैं
औरत के आंसू
जि‍नका कोई ठौर नहीं होता
न दामन...न कांधा कि‍सी का
नायाब नहीं, बेकार हैं ये
क्‍योंकि
औरतों की फि‍तरत में हैं
आंसू बहाना...
शायद मर्द की आंखों से नि‍कले
एक कतरे से
इसकी कीमत बढ़ जाए
इसलि‍ए
तुम्‍हारी आंखों से निकले
एक कतरे की
जरूरत है औरत को.....

8 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

तुम्‍हारी आंखों से निकले
एक कतरे की
जरूरत है औरत को.....

लाजबाब प्रस्तुति,,,,रश्मि जी,,,

RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,

निर्मला कपिला said...

बिना दुख दर्द के ये ज़िन्दगी अच्छी नही लगती
मुझे इन आसूँओं से दुश्मनी अच्छी नही लगती
बहुत सुन्दर रचना ये शेर आपकी इस रचना के नाम।

Vinay said...

---शायद आपको पसंद आये---
1. Google Page Rank Update
2. ग़ज़लों के खिलते गुलाब

आपके ब्लॉग से CRTL+A करके सब स्लेक्ट और CRTL+C से कापी हो जाता है कृप्या तकनीक दृष्टा पर दी गयी नयी विधि प्रयोग करें।

Onkar said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

परमजीत सिहँ बाली said...

बेहतरीन रचना...

Anavrit said...

तुम्‍हारी आंखों से निकले
एक कतरे की
जरूरत है औरत को.....lajawaab sundar

dr.mahendrag said...

शायद मर्द की आंखों से नि‍कले
एक कतरे से
इसकी कीमत बढ़ जाए
इसलि‍ए
तुम्‍हारी आंखों से निकले
एक कतरे की
जरूरत है औरत को.....
Khoobsurat Rachna

bkaskar bhumi said...

रश्मि जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'रूप-अरूप' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 7 अगस्त को 'औरत के आंसू...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव