सफर के पहले पड़ाव पर
हूं अभी
देखना एक दिन..
तुम्हारी उठाई
खामोशियों की दीवार में
सेंध लगा दूंगी
और दाखिल हो जाउंगी
मौन के उस जंगल में
जहां सिर्फ
नीला नभ और हरी धरती
तुम्हारे साथी हैं.....
वहां मैं
खिलखिलाहटों के
इतने पौधे रोपूंगी
कि
गुंजायमान हो उठेगी
चारों दिशाएं....
और तुम
कस्तूरी मृग बन ढूंढना
उन खुशियों को
जो फूटेगा
तुम्हारे ही अंदर से......।
14 comments:
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २४/७/१२ मंगल वार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप सादर आमंत्रित हैं
बहुत ही प्यारी रचना... :)
कृपया ब्लॉग पर से टिप्पणी-नियंत्रण हटा दें...
बहुत अच्छी भावाव्यक्ति , बधाई
वाह...........
बहुत सुन्दर रश्मि जी...
अनु
और दाखिल हो जाउंगी
मौन के उस जंगल में
जहां सिर्फ
नीला नभ और हरी धरती
तुम्हारे साथी हैं.....
..बहुत खूब!
वाह !
बहुत सुंदर !!
पहले खुशियों की
कस्तूरी बनायेंगी
फिर तुमको मृग बना
उसे ढूँढने में
लगायेंगी !!
वाह !
बहुत सुंदर !!
पहले खुशियों की
कस्तूरी बनायेंगी
फिर तुमको मृग बना
उसे ढूँढने में
लगायेंगी !!
bahut badhiya...badi dhrishthta se aur haq se dakhil ho jayengi...
मौन के जंगल में सेंध ...
बढ़िया !
बहुत सुंदर भाव संयोजन....
बहुत सुन्दर...
रश्मि जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'रूप-अनुरूप' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 25 जुलाई को 'मौन का जंगल' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
वाह, बहुत सुन्दर
Post a Comment