Wednesday, June 27, 2012

मैग्‍नोलि‍या और तुम

मैग्‍नोलि‍या के फूल और तुम
पर्यायवाची हो जैसे....
जब भी
सफेद फूलों से नि‍कलने वाली खुश्‍बू
मुझ तक आती है
मेरी आंखों में
तुम और मैग्‍नोलि‍या
साथ-साथ झि‍लमि‍लाते हो...
सफेद...खूबसूरत..उज्‍जवल
जि‍सकी सुगंध
हफ़तों नहीं उतरती जेहन से
ऐसा सुंदर फूल
और ऐसे अतुलनीय तुम
याद है न तुम्‍हें
मैग्‍नोलि‍या का वह पेड़
जहां से हर मुलाकात की याद स्‍वरूप
एक फूल अपने हाथों से तोड़
दि‍या करते थे मुझे
अगली मुलाकात तक के
अहसासों को संजोने के लि‍ए
सुनो....इन दि‍नों
तुम और मैग्‍नोलि‍या दोनों
मुझे बहुत याद आते हो..
बहुत याद आते हो.......

7 comments:

vandana gupta said...

सुन्दर भावाव्यक्ति।

मुकेश पाण्डेय चन्दन said...

मैग्‍नोलि‍या तो मैंने नही देखा , लेकिन कविता के भाव सुन्दर है .
क्या साथ में प्रदर्शित चित्र मैग्‍नोलि‍या का है ?

मुकेश पाण्डेय चन्दन said...

sundar bhav

M VERMA said...

सुनो....इन दि‍नों
तुम और मैग्‍नोलि‍या दोनों
मुझे बहुत याद आते हो

एहसास का यह खूबसूरत बयाँ .. क्या कहने

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत अच्छी अहसासों की प्रस्तुति,,,सुंदर रचना,,,,,

MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,

सदा said...

सुनो....इन दि‍नों
तुम और मैग्‍नोलि‍या दोनों
मुझे बहुत याद आते हो
भावमय करते शब्‍दों का संगम ... बेहतरीन

Darshan Darvesh said...

आपके एहसास के बयां को मैं कैसे बयां करूं ? इसे शब्द नहीं हैं मेरे पास | अति खूबसूरत |