Monday, June 25, 2012

रूके कदम....

उस मोड़ पर
जहां ठहरकर
हम दो
वि‍परि‍त ध्रुव की तरफ
मुड़ने ही वाले थे...
एक दूसरे को
अलवि‍दा
कहने से पहले
एक बार फि‍र से
भरपूर
मगर डबडबाई आंखों से
देखना चाहा हमने
तभी
वेगवान
आंसुओं के प्रवाह ने
तोड़ दी अपनी हदें
.....बरस पड़ी
और
वि‍दा के लि‍ए
उठे दो हाथ
अचानक आबद्ध हो उठे
सारी दूरि‍यों को तज
एक-दूजे में जा सि‍मटे....

12 comments:

  1. waah komal ahsas bhari prastuti...dil khush ho gaya...

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  2. बहुत ही सुंदर रचना रश्मि दी \ भावपूर्ण और ठिठका देने वाली ।

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  3. निर्बाध आबद्धता मिले
    बहुत खूबसूरत रचना

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  4. भावपूर्ण रचना आभार

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  5. वाह! क्या ही खुबसूरत रचना...
    सादर.

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  6. अनुपम भाव ... बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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