उस मोड़ पर
जहां ठहरकर
हम दो
विपरित ध्रुव की तरफ
मुड़ने ही वाले थे...
एक दूसरे को
अलविदा
कहने से पहले
एक बार फिर से
भरपूर
मगर डबडबाई आंखों से
देखना चाहा हमने
तभी
वेगवान
आंसुओं के प्रवाह ने
तोड़ दी अपनी हदें
.....बरस पड़ी
और
विदा के लिए
उठे दो हाथ
अचानक आबद्ध हो उठे
सारी दूरियों को तज
एक-दूजे में जा सिमटे....
waah komal ahsas bhari prastuti...dil khush ho gaya...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना रश्मि दी \ भावपूर्ण और ठिठका देने वाली ।
ReplyDeleteनिर्बाध आबद्धता मिले
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
बहुत बढ़िया कमेन्ट
ReplyDeleteफेसबुक पर यूट्यूब की विडियो कैसे पोस्ट करें?
मन को प्रभावित करती सुंदर रचना,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
sundar wa bhawpoorna prastuti
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह! क्या ही खुबसूरत रचना...
ReplyDeleteसादर.
बेहद खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteअनुपम भाव ... बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeletemarvelous.....
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