तोड़ दे आकर कोई इस खामोशी को
यह तन्हाई की ख्वाहिश है
उदास चेहरे पर आकर सजा दे कोई तब्बसुम
यह आईने की ख्वाहिश है
बेसाख्ता ही फिजां में फैल जाए कोई खुश्बू
वो आपकी ही खुश्बू हो, ये हवाओं की ख्वाहिश है
मिलकर साथ कभी हम चांदनी में बैठे
ये आस्मां में चमक रहे उस चांद की ख्वाहिश है
मनोभाव का सुंदर सम्प्रेषण,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,फुहार....: न जाने क्यों,
सुंदर ...हसीन ख्वाइश से सजी आप्की खूबसूरत रचना ...!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी ....!!
jarur puri hogi .....ye khawahish......
ReplyDeletebahut accha laga yh khwaishon ka silsila magar kya karen....
ReplyDelete"Insaan ki khwaish ki koi inteha nahi
do gaz zameen chaahiye,do gaz kafan ke baad"
आपकी पोस्ट कल 21/6/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा - 917 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
ख्वाहिशें साकार होती रहें
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