Tuesday, June 19, 2012

.....ख्‍वाहि‍श है


तोड़ दे आकर कोई इस खामोशी को
यह तन्‍हाई की ख्‍वाहि‍श है
उदास चेहरे पर आकर सजा दे कोई तब्‍बसुम
यह आईने की ख्‍वाहि‍श है

बेसाख्‍ता ही फि‍जां में फैल जाए कोई खुश्‍बू
वो आपकी ही खुश्‍बू हो, ये हवाओं की ख्‍वाहि‍श है
मि‍लकर साथ कभी हम चांदनी में बैठे
ये आस्‍मां में चमक रहे उस चांद की ख्‍वाहि‍श है

6 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मनोभाव का सुंदर सम्प्रेषण,,,,,

RECENT POST ,,,,फुहार....: न जाने क्यों,

Anupama Tripathi said...

सुंदर ...हसीन ख्वाइश से सजी आप्की खूबसूरत रचना ...!!
बहुत अच्छी लगी ....!!

Dr.NISHA MAHARANA said...

jarur puri hogi .....ye khawahish......

Pallavi saxena said...

bahut accha laga yh khwaishon ka silsila magar kya karen....

"Insaan ki khwaish ki koi inteha nahi
do gaz zameen chaahiye,do gaz kafan ke baad"

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट कल 21/6/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें

चर्चा - 917 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क

M VERMA said...

ख्वाहिशें साकार होती रहें