Friday, May 25, 2012

आओ न...

आओ न...
पास बैठो तुम
तुम्‍हारे मौन में
मैं वो शब्‍द सुनूंगी
जो जुबां कहती नहीं
दि‍ल कहता है तुम्‍हारा......

आओ न...
फि‍र कभी मेरे इंतजार में
तुम तन्‍हा उदास बैठो
और दूर खड़ी होकर
मैं तुम्‍हारी बेचैनी देखूंगी....

आओ न...
मि‍ल जाओ कभी
राहों में बाहें फैलाए
मैं नि‍कल जाउंगी कतराकर मगर
खुद को उनमें समाया देखूंगी......

आओ न...
फि‍र से अजनबी बनकर
मेरा रास्‍ता रोको..मुझसे बात करो
मुझे लेकर दूर कहीं नि‍कल जाओ
वादा है मेरा, झपकने न दूंगी पलकें
बस..तुममें ही डूबकर जिंदगी बसर करूंगी......।

7 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

आओ न...
फि‍र से अजनबी बनकर
मेरा रास्‍ता रोको..मुझसे बात करो
मुझे लेकर दूर कहीं नि‍कल जाओ
वादा है मेरा, झपकने न दूंगी पलकें
बस..तुममें ही डूबकर जिंदगी बसर करूंगी....

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,

MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

ANULATA RAJ NAIR said...

इतने प्रलोभन..............
उसे आना ही होगा........

सशक्त पुकार है...

रश्मि प्रभा... said...

प्यारी सी अभिव्यक्ति

M VERMA said...

आओ न...
फि‍र से अजनबी बनकर
मेरा रास्‍ता रोको..मुझसे बात करो
चुलबुली पर बहुत प्यारी ख्वाहिश ...
बहुत सुन्दर

Onkar said...

bahut komal si abhivyakti

Sanju said...

Very nice post.....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.

शिवनाथ कुमार said...

क्या खूब लिखा है आपने ...
बहुत ही सुंदर ढंग से भावों को उतारा है ...