रोज गुजरती हूं
जिस सड़क से
उससे उतरकर बायीं तरफ
एक कब्र है
जिसमें
जाने कितने बरसों से
सोया है कोई
हर रोज वहां जाकर
पल भर के लिए ठिठकती हूं
सोचती हूं
कि....किसी का तो प्रिय होगा
कोई तो इसके लिए रोता होगा
ये शख्स..जो चिरनिद्रा में लीन है
उसकी याद में काश...
दो फूल चढ़ा देता कोई
सांझ एक दीप जला देता कोई
क्या सारे अपनों ने
भुला दिया इसे.....
मगर आज देखा....अनायास
लाल-लाल फूलों से लदा
एक पेड़ गुलमोहर का
जो झुक-झुक कर
गलबहियां डाल रहा था...
असंख्य पंखुडियों से
कब्र सजा रहा था...
जरूर किसी ने याद में उसकी
कभी पौधा लगाया होगा
और उस पेड़ ने सुन ली
मेरे दिल की सदा....
इसलिए तो उस अनजाने
शख्स की कब्र को
यूं सजा रखा था.....।
11 comments:
सुंदर..........
दिल को छू गयी..............
सादर.
साधु-साधु
साधु-साधु
भावपूर्ण...
बहुत खूब दिल को छूती सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना.........
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
बहुत सुन्दर भाव ..
लाजवाब
गुलमोहर यूं ही खिलता रहे
शोभा चर्चा-मंच की, बढ़ा रहे हैं आप |
प्रस्तुति अपनी देखिये, करे संग आलाप ||
मंगलवारीय चर्चामंच ||
charchamanch.blogspot.com
वाह क्या बात है बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति
बहुत गहरे एहसास इस दिल के ...बहुत खूब
बहुत संवेदनशील .... मन भी न जाने क्या क्या सोचता है ...
बेहतरीन रचना के लिये बधाई स्वीकारें.
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