Monday, April 30, 2012

गुलमोहर और कब्र

रोज गुजरती हूं
जि‍स सड़क से
उससे उतरकर बायीं तरफ
एक कब्र है
जि‍समें
जाने कि‍तने बरसों से
सोया है कोई
हर रोज वहां जाकर
पल भर के लि‍ए ठि‍ठकती हूं
सोचती हूं
कि....कि‍सी का तो प्रि‍य होगा
कोई तो इसके लि‍ए रोता होगा
ये शख्‍स..जो चि‍रनि‍द्रा में लीन है
उसकी याद में काश...
दो फूल चढ़ा देता कोई
सांझ एक दीप जला देता कोई
क्‍या सारे अपनों ने
भुला दि‍या इसे.....
मगर आज देखा....अनायास
लाल-लाल फूलों से लदा
एक पेड़ गुलमोहर का
जो झुक-झुक कर
गलबहियां डाल रहा था...
असंख्‍य पंखुडि‍यों से
कब्र सजा रहा था...
जरूर कि‍सी ने याद में उसकी
कभी पौधा लगाया होगा
और उस पेड़ ने सुन ली
मेरे दि‍ल की सदा....
इसलि‍ए तो उस अनजाने
शख्‍स की कब्र को
यूं सजा रखा था.....।

11 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

सुंदर..........

दिल को छू गयी..............

सादर.

Arun sathi said...

साधु-साधु

Arun sathi said...

साधु-साधु

RITU BANSAL said...

भावपूर्ण...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत खूब दिल को छूती सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना.........

MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

M VERMA said...

बहुत सुन्दर भाव ..
लाजवाब
गुलमोहर यूं ही खिलता रहे

रविकर said...

शोभा चर्चा-मंच की, बढ़ा रहे हैं आप |
प्रस्तुति अपनी देखिये, करे संग आलाप ||

मंगलवारीय चर्चामंच ||

charchamanch.blogspot.com

Pallavi saxena said...

वाह क्या बात है बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति

Anju (Anu) Chaudhary said...

बहुत गहरे एहसास इस दिल के ...बहुत खूब

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत संवेदनशील .... मन भी न जाने क्या क्या सोचता है ...

रचना दीक्षित said...

बेहतरीन रचना के लिये बधाई स्वीकारें.