उतरती धूप को विदा करने
आई शाम
रास्ता भूल आज मेरी
देहरी पर आ खड़ी हुर्इ्
और मुझे
अपनेआप में गुम पाकर
कहा.....
न किसी के जाने का दुख
न आने की खुशी
आम की बौर की तरह
आज तू क्यों बौराई है....
गुम है ऐसे जैसे
चली प्यार भरी पुरवाई है....
मदमाती हवा है इसलिए
महक रही है तू भीनी-भीनी
खुद पर इतराने वाली
ये याद रख कि
तू फूल नहीं बस मंजर है...
आज खिली-महकी है
कल सूख जाएगी.....
भौरों को पनाह देने वाली
कल न होगा कोई तेरे आसपास
पेड़ से टपक-टपक कर
धूल बन जाएगी......
इसलिए
हर सोच को कर खुद से परे
न कर 'खास' होने का गुमान
आज जो हैं बनते तुम्हारे
कल किसी को
तेरी याद भी नहीं आएगी......।
हर सोच को कर खुद से परे
ReplyDeleteन कर 'खास' होने का गुमान
आज जो हैं बनते तुम्हारे
कल किसी को
तेरी याद भी नहीं आएगी......।
बहुत खूब क्या बात है , मुबारक हो
बहुत सुन्दर रश्मि जी...
ReplyDeleteजीवन का यथार्थ है ये...
भौरों को पनाह देने वाली
कल न होगा कोई तेरे आसपास
पेड़ से टपक-टपक कर
धूल बन जाएगी......
बहुत खूब..
गहरे भाव लिए सुंदर रचना।
ReplyDeleteअतिसुन्दर
ReplyDeleteसच है हर किसी का समय एक सा नहीं होता .. जो आज है कल नहीं होता ...
ReplyDeletebahut sunder
ReplyDeleteसमय के महत्व को जो समझता है, वही आम से खास हो पाता है।
ReplyDeleteसुंदर बिम्बों से आपने अपनी बात रखी है।