Monday, March 12, 2012

हम सांझ बन जाएंगे.....

कभी सोचा था....
जैसे दूर क्षि‍ति‍ज में
धरती-अंबर
एकाकार नजर आते हैं
वैसे ही एक दि‍न
उजाले और रात की तरह
मि‍लकर
हम भी सांझ बन जाएंगें।

मगर अब हममें-तुममे
बस इतना
बाकी बच गया है
जैसे धरती और बादल का रि‍श्‍ता....
इसलि‍ए
जब जी चाहे
बरस जाना तुम।

मैं धरती बन समेट लूंगी
अपने अंदर
सारे आरोप-प्रत्‍यारोप
और अहंकार तुम्‍हारा....।

तुम्‍हारा प्‍यार
रेत में पड़ी बूंदों की तरह
वि‍लीन होता देखूंगी
मगर
प्रति‍कार में कभी
तुम सा
आहत नहीं करूंगी
उस हृदय को
एक क्षण के लि‍ए भी जि‍समें
मुझे जगह दी थी तुमने।

क्‍योंकि‍ मेरा प्‍यार
अदृश्‍य हवा है
जि‍से महसूसा जा सकता है
मगर देखा नहीं
तुम्‍हारी तरह
बादल नहीं......
जो ठि‍काने बदल-बदल कर बरसे।

16 comments:

  1. क्‍योंकि‍ मेरा प्‍यार
    अदृश्‍य हवा है
    जि‍से महसूसा जा सकता है
    मगर देखा नहीं
    तुम्‍हारी तरह
    बादल नहीं......
    जो ठि‍काने बदल-बदल कर बरसे……………वाह ! क्या बात कही है …………बहुत खूबसूरत

    ReplyDelete
  2. मेरा प्यार हवा है जो महसूस किया जा सकता है
    तुम्हारी तरह बादल नहीं जो ठिकाने बदल-बदल कर बरसे वाह!!! बहुत ही सुंदर भाव संयोजन...सार्थक रचना बधाई

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर.........

    काश ये कविता मैंने लिखी होती...तो अपनी भावाव्यक्ति पर गर्व कितना करती..

    लाजवाब रचना रश्मि जी.....

    ReplyDelete
  4. बहुत ही बढि़या।

    ReplyDelete
  5. रश्मी जी इतनी विशिष्ट कविता लिखने के लिये मेरी ओर से आपको बधाई । शब्दो के अदृश्य हवा मे जितने उँचे प्रेम के अर्थ है उतने ही गहरे भी है मुझे जो अनुभुतियां हुइ उसके लिये आभार । जिन क्षणों मे शब्दो के विहंगम तिलिस्म के अनुभव हुये उनके लिये धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  6. प्रोत्‍साहन के लि‍ए आप सभी का आभार...

    ReplyDelete
  7. मैं धरती बन समेट लूंगी
    अपने अंदर
    सारे आरोप-प्रत्‍यारोप
    और अहंकार तुम्‍हारा....।
    BAHUT HI SUNDAR

    ReplyDelete
  8. मैं धरती बन समेट लूंगी
    अपने अंदर
    सारे आरोप-प्रत्‍यारोप
    और अहंकार तुम्‍हारा....।
    EK BAHUT HI SUNDAR RACHNA

    ReplyDelete
  9. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
    चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
    आपकी एक टिप्‍पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

    ReplyDelete
  10. बेहद सुन्दर बाव लिए रचना |आप बहुत अच्छा लिखती है शब्द संयोजन बहुत ही सुन्दर है |
    आशा

    ReplyDelete
  11. क्‍योंकि‍ मेरा प्‍यार
    अदृश्‍य हवा है
    जि‍से महसूसा जा सकता है
    मगर देखा नहीं
    तुम्‍हारी तरह
    बादल नहीं......
    जो ठि‍काने बदल-बदल कर बरसे।
    प्रेम में समर्पण की खूबसूरत भावाभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  12. बहुत खूब ... डरती की रतः गहरा धैर्यवान ही होना चाहोइए ... प्यार और उसका एहसास ... सुन्दर रचना ...

    ReplyDelete
  13. bahut ,bahut sundar rachna,kaee dino baad kuch itna umda padhne ko mila,shukriya aap ka :)

    ReplyDelete
  14. बहुत खूब! बहुत सुन्दर रचना! मनभावन.

    आभार...संतोष .

    ReplyDelete
  15. क्‍योंकि‍ मेरा प्‍यार
    अदृश्‍य हवा है
    जि‍से महसूसा जा सकता है
    मगर देखा नहीं
    तुम्‍हारी तरह
    बादल नहीं......
    जो ठि‍काने बदल-बदल कर बरसे।

    बहुत खूब. सुन्दर रचना.
    आभार.

    ReplyDelete
  16. बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति भी ....!!
    शुभकामनायें ...!!

    ReplyDelete

अगर आपने अपनी ओर से प्रतिक्रिया पब्लिश कर दी है तो थोड़ा इंतज़ार करें। आपकी प्रतिक्रिया इस ब्लॉग पर ज़रूर देखने को मिलेगी।