Saturday, March 10, 2012

वि‍श्‍वास....

''तुम्‍हें तो ठहरना था
उस घड़ी तक मेरे पास
जब तक
सांसों की डोर बंधी है मुझसे...
और एक मजबूत दरख्‍त की तरह
थामे रहना था
मेरे अवि‍श्‍वास...मेरी लड़खड़ाहट को
अपने वि‍श्‍वास के मजबूत घेरे में
मगर तुम तो
बालुई जमीन पर पनपे बरगद नि‍कले
हवा के एक झोंके ने
वजूद ही उखाड़ डाला तुम्‍हारा
चकि‍त हूं...
जि‍सके आसरे खेनी थी
जीवन की नैया
मझंधार में उसी खेवैये ने
डुबो दी मेरे वि‍श्‍वास की नैया.....।''

5 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर भाव रश्मि जी....

अच्छी रचना...

jadibutishop said...

badhiya rachna...
http://jadibutishop.blogspot.com

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

ओह

sangita said...

sundar prastuti,mere blog par aapka svagat hae .

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

प्रभावी रचना....
सादर बधाई.