कभी सोचा था....
जैसे दूर क्षितिज में
धरती-अंबर
एकाकार नजर आते हैं
वैसे ही एक दिन
उजाले और रात की तरह
मिलकर
हम भी सांझ बन जाएंगें।
मगर अब हममें-तुममे
बस इतना
बाकी बच गया है
जैसे धरती और बादल का रिश्ता....
इसलिए
जब जी चाहे
बरस जाना तुम।
मैं धरती बन समेट लूंगी
अपने अंदर
सारे आरोप-प्रत्यारोप
और अहंकार तुम्हारा....।
तुम्हारा प्यार
रेत में पड़ी बूंदों की तरह
विलीन होता देखूंगी
मगर
प्रतिकार में कभी
तुम सा
आहत नहीं करूंगी
उस हृदय को
एक क्षण के लिए भी जिसमें
मुझे जगह दी थी तुमने।
क्योंकि मेरा प्यार
अदृश्य हवा है
जिसे महसूसा जा सकता है
मगर देखा नहीं
तुम्हारी तरह
बादल नहीं......
जो ठिकाने बदल-बदल कर बरसे।
16 comments:
क्योंकि मेरा प्यार
अदृश्य हवा है
जिसे महसूसा जा सकता है
मगर देखा नहीं
तुम्हारी तरह
बादल नहीं......
जो ठिकाने बदल-बदल कर बरसे……………वाह ! क्या बात कही है …………बहुत खूबसूरत
मेरा प्यार हवा है जो महसूस किया जा सकता है
तुम्हारी तरह बादल नहीं जो ठिकाने बदल-बदल कर बरसे वाह!!! बहुत ही सुंदर भाव संयोजन...सार्थक रचना बधाई
बहुत सुन्दर.........
काश ये कविता मैंने लिखी होती...तो अपनी भावाव्यक्ति पर गर्व कितना करती..
लाजवाब रचना रश्मि जी.....
बहुत ही बढि़या।
रश्मी जी इतनी विशिष्ट कविता लिखने के लिये मेरी ओर से आपको बधाई । शब्दो के अदृश्य हवा मे जितने उँचे प्रेम के अर्थ है उतने ही गहरे भी है मुझे जो अनुभुतियां हुइ उसके लिये आभार । जिन क्षणों मे शब्दो के विहंगम तिलिस्म के अनुभव हुये उनके लिये धन्यवाद ।
प्रोत्साहन के लिए आप सभी का आभार...
मैं धरती बन समेट लूंगी
अपने अंदर
सारे आरोप-प्रत्यारोप
और अहंकार तुम्हारा....।
BAHUT HI SUNDAR
मैं धरती बन समेट लूंगी
अपने अंदर
सारे आरोप-प्रत्यारोप
और अहंकार तुम्हारा....।
EK BAHUT HI SUNDAR RACHNA
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बेहद सुन्दर बाव लिए रचना |आप बहुत अच्छा लिखती है शब्द संयोजन बहुत ही सुन्दर है |
आशा
क्योंकि मेरा प्यार
अदृश्य हवा है
जिसे महसूसा जा सकता है
मगर देखा नहीं
तुम्हारी तरह
बादल नहीं......
जो ठिकाने बदल-बदल कर बरसे।
प्रेम में समर्पण की खूबसूरत भावाभिव्यक्ति !
बहुत खूब ... डरती की रतः गहरा धैर्यवान ही होना चाहोइए ... प्यार और उसका एहसास ... सुन्दर रचना ...
bahut ,bahut sundar rachna,kaee dino baad kuch itna umda padhne ko mila,shukriya aap ka :)
बहुत खूब! बहुत सुन्दर रचना! मनभावन.
आभार...संतोष .
क्योंकि मेरा प्यार
अदृश्य हवा है
जिसे महसूसा जा सकता है
मगर देखा नहीं
तुम्हारी तरह
बादल नहीं......
जो ठिकाने बदल-बदल कर बरसे।
बहुत खूब. सुन्दर रचना.
आभार.
बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति भी ....!!
शुभकामनायें ...!!
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