Thursday, March 1, 2012

तुम्‍हारी छांव....

समय की कड़ी धूप में तुम
शीतल छांव से लगते हो...
छूट गया जो बचपन में
मेरे वो प्‍यारे गांव से लगते हो...
जीवन की वि‍संगति‍यों में उलझकर
जब प्राण पखेरू सा हो जाता है
मुझको जीवन पाठ पढ़ाते
आंगन वाले पीपल के
ठांव से लगते हो.....

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति!

Sunil Kumar said...

बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई

वाणी गीत said...

घनी छाँव के नीचे ठांव सुकून देती है !

sheen said...

bhut khub