Friday, February 10, 2012

क्षणि‍काएं......


1. मन
*********

''वातावरण में
है तपि‍श
और
क्षुब्‍ध है
मन.....
परायों से
घबराया हुआ
और
अपनों से
उबा हुआ है
मन.....''

2. अंधेरा
*******

''मैं भागती रही हूं
हमेशा
अंधेरों की तरफ
उजाले को छोड़.....
और आप
हर बार
खींच लि‍ए चलते हैं
मुझको, मेरी उंगली पकड़
अंधेरों से
उजाले की ओर.....''

3.वफा
*****

"वफाओं से छुड़ा लो दामन
ज़फा जमाने का दस्‍तूर है
ऐतबार करो जि‍स पर
वो फरेब देता जरूर है.... ''

12 comments:

Nirantar said...

salaam
दर्द-ऐ-दिल मन से
बयां किया आपने
दीवानगी का
सबूत दिया आपने

dr.mahendrag said...

Aitbar karo jis par wo fareb deta jaroor hai....

AAJ WAFA KA ARTH HI YAHI RAH GAYA HAI,PARIBASHA BADAL GAYE HAI

CHHANIKAYE HAI PAR BADI BHAV PURNA

Sunil Kumar said...

दिल को छू लेने वाली क्षणिकाएं, आभार

Dr.NISHA MAHARANA said...

waah...bahut khoob.

अजय कुमार झा said...

तीनों ही टुकडे , नगीने हैं ..बहुत ही खूबसूरती से आपने मन अंधेरा और वफ़ा के दोनों पहलुओं से रूबरू करा दिया । कम में बहुत कह जाने की कला आपसे सीखी जा सकती है । शुक्रिया और शुभकामनाएं

Madhuresh said...

मैं भागती रही हूं
हमेशा
अंधेरों की तरफ
उजाले को छोड़.....
और आप
हर बार
खींच लि‍ए चलते हैं
मुझको, मेरी उंगली पकड़
अंधेरों से
उजाले की ओर
Bahut Sundar!

vandana gupta said...

बहुत ही सुन्दर कहा।

M VERMA said...

बहुत खूब

Udan Tashtari said...

बहुत ही सुन्दर!!

Atul Shrivastava said...

बेहतरीन भाव।
सुंदर रचना।

Naveen Mani Tripathi said...

"वफाओं से छुड़ा लो दामन
ज़फा जमाने का दस्‍तूर है
ऐतबार करो जि‍स पर
वो फरेब देता जरूर है.... ''

GAHRA TAJURBA ....BAHUT HI KHOOB SOORAT ....BADHAI.

कुमार राधारमण said...

अनुभव से उपजी बातें। प्रायः,हम सबके जीवन का अनुभव।