कहता है वो.....
कि मुझसे
कब, क्यों और कहां
का हिसाब
मत किया करो....
मुझे चैन से जीने
दिया करो।
और जो मैं कह दूं
किसी रोज
कि
मेरे सोने-जागने
हंसने-बतियाने
यहां तक कि
चलती सांसों का भी
जो हिसाब रखते हो...
न रखा करो।
तुमको मिली स्वतंत्रता का
दसवां हिस्सा भी
मुझे जीने दिया करो....
उस दिन
मेरे सम्मान में जो
कसीदे पढ़े जाएंगे
क्या आंखों में आंसू भरकर भी
हम किसी को बता पाएंगे ?
पढ़ रहा हूँ ...समझ रहा हूँ ..
ReplyDeleteगहन ...मर्मस्पर्शी ...
और जो मैं कह दूं
ReplyDeleteकिसी रोज
कि
मेरे सोने-जागने
हंसने-बतियाने
यहां तक कि
चलती सांसों का भी
जो हिसाब रखते हो...
न रखा करो।... पता है न , उंगलियाँ तुम पर ही उठेंगी
उफ़ ज़िन्दगी की हकीकत बयाँ कर दी…………बेहतरीन।
ReplyDeleteखूबसूरत कविता.... दिल को छूती हुई सी...
ReplyDeleteVakai behtar
ReplyDeletehar ek kee kismat mein kahnaa kahaan?
ReplyDeletesirf sunnaa hee likhaa hotaa
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteSOCHNE. SAMJHNE KO MAJBOOR KARTA HAI'SANG RAH KAR BHALA KOE HISAB KARTA HAI, DONO HI NA KARE TO ACHHA HAI
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति ....!
ReplyDeleteबेहद उम्दा.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से अपना दर्द छिपाया लगता हैं
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक भाव अभिव्यक्ति ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
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