Wednesday, February 1, 2012

खामोशि‍यों का शोर....

सुना है मैंने....
खामोशि‍यों का शोर
तब और तीव्र हो जाता है
जब
हजार बातें हो दि‍ल में
और वो
अनकही रह जाए
कुछ ऐसा ही
जैसे
चांद
इतना दूर होता है
कि‍ चकोर की आवाज का दर्द
उस तक नहीं पहुंचता
और न ही
महसूसता है वह
चकोर की पीड़ा कभी......
इसलि‍ए तो
मान लि‍या मैंने
कि‍ शब्‍द नि‍रर्थक हैं
और भाव बेमानी
तुम भी कभी
सुनो न
चुि‍प्पयों को बति‍याते.....
शायद वो सारा अनकहा
तुम्‍हारे कान में गुनगुनाने लगे........।


10 comments:

  1. aapkee likhee kavitaa ko khamoshee se jee rahaa hoon

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  2. बहुत ही गहरे भाव लिए हुए यह रचना... बेहतरीन!

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  3. http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/02/blog-post_02.html

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  4. अनुपम भाव संयोजन ।

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  5. बहुत ही बढ़िया गहन अभिव्यक्ति http://mhare-anubhav.blogspot.com/ समय मिले कभी तो आयेगा मेरी इस पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  6. शानदार. ख़ामोशी कभी खामोश नही होती.

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  7. पढ़ रहा हूँ ...समझ रहा हूँ ..सोच रहा हूँ
    .......गहरे भाव.. बेहतरीन!

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  8. कभी - कभी ख़ामोशी भी बहुत
    कुछ कह जाती है बस उसे
    समझाना पड़ता है ||
    एक गीत यद् आ गया
    "चुप तुम रहो चुप हम रहे ख़ामोशी को
    ख़ामोशी से बात करने दो "
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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