सुना है मैंने....
खामोशियों का शोर
तब और तीव्र हो जाता है
जब
हजार बातें हो दिल में
और वो
अनकही रह जाए
कुछ ऐसा ही
जैसे
चांद
इतना दूर होता है
कि चकोर की आवाज का दर्द
उस तक नहीं पहुंचता
और न ही
महसूसता है वह
चकोर की पीड़ा कभी......
इसलिए तो
मान लिया मैंने
कि शब्द निरर्थक हैं
और भाव बेमानी
तुम भी कभी
सुनो न
चुिप्पयों को बतियाते.....
शायद वो सारा अनकहा
तुम्हारे कान में गुनगुनाने लगे........।
sun rahi hun, gun rahi hun...
ReplyDeleteaapkee likhee kavitaa ko khamoshee se jee rahaa hoon
ReplyDeleteबहुत ही गहरे भाव लिए हुए यह रचना... बेहतरीन!
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/02/blog-post_02.html
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन ।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया गहन अभिव्यक्ति http://mhare-anubhav.blogspot.com/ समय मिले कभी तो आयेगा मेरी इस पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteशानदार. ख़ामोशी कभी खामोश नही होती.
ReplyDeleteपढ़ रहा हूँ ...समझ रहा हूँ ..सोच रहा हूँ
ReplyDelete.......गहरे भाव.. बेहतरीन!
कभी - कभी ख़ामोशी भी बहुत
ReplyDeleteकुछ कह जाती है बस उसे
समझाना पड़ता है ||
एक गीत यद् आ गया
"चुप तुम रहो चुप हम रहे ख़ामोशी को
ख़ामोशी से बात करने दो "
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ...