याद तुम्हारी....
नहीं जानती
कि जब
ढलती शाम को
पेड़ के पत्तों पर
पीली आभा बिखरती है
और सर्द हवाएं
तन को चुभने सी लगती हैं
तब
डूबते सूरज से इतर...
जहां लालिमा
हल्की होती है
तुम्हारी याद
यूं मुझे अपनी
गिरफ़़त में लेती है
जैसे
सूरज के अस्त होते ही
उजाले को अंधियारा
अपने आगोश में
भर लेता है....
बहुत सटीक लिखा है आपने!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर कविता
ReplyDeletesooraj ko bhee apne andar samet letaa hai
ReplyDeletebahut badhiyaa ,khoob soorat
वाह क्या बिम्ब साम्य लिया है ...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है ! बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteकल
ReplyDeleteमिटाना चाहा था अपने सर्नामों को
लिफाए बंद ही लौट जाएँ किसी डी एल ओ को
हर लिफाफा लाता है तुम्हारी यादें
बेहाली के लंबे दौर थमते नहीं है
तुम्हारा दिया दिए का तेल चुक रहा है
अब पत्रों का सिलसिला भी थमे तो सोचें
क्या साथ जाएगा
क्या रह जाएगा
क्या तुम छूट पाओगे
क्या आज़ाद करोगे हमें ...
अब कर दो आज़ाद कि दो सांस ले पायें
अपने हिस्से की ....
प्रकृति के बिम्बों द्वारा संदेश देती रचना।
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