Friday, December 9, 2011

कोहरे की चादर

तन्‍हाई भ‍री
लंबी....सर्द रातों की सुबह
जब
गहरी धुंध से
मि‍लकर
और गहरी
हो जाती है
तब
तुम्‍हारी याद
पेड़ों के झुरमुट के
पीछे से
झांकती
सूरज की
पहली कि‍रण की तरह
मुझे
छू-छू जाती है.....
ऐसा लगता है
जैसे
कोहरे की चादर ओढ़े
अलसाई सी सुबह
अधमुंदी पलकों से
मेरी ही तरह
तुम्‍हारे आने की
बाट जोहती है........ ।

18 comments:

  1. इंतज़ार की वो घड़ियाँ कितनी सुहानी होती...

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  3. मेरी ही तरह
    तुम्‍हारे आने की
    बाट जोहती है.......
    ....वाह,बहुत सुंदर....पोस्ट पसंद आई|

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  4. ऐसा लगता है
    जैसे
    कोहरे की चादर ओढ़े
    अलसाई सी सुबह
    अधमुंदी पलकों से
    मेरी ही तरह
    तुम्‍हारे आने की
    बाट जोहती है.....behtareen khyaal

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  5. सुंदर भाव. शानदार रचना.

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  6. आप यकायक गुलज़ार साहब जैसी बात कह्ने लगती हैं ... सांझ होते ही जैसे पर्दा उठ्ने लगता है ... और कोई मोजार्ट या बीथोवन तारों के हाथ साज़ थमा किसी कंसर्ट को तैयार हो जाता है ... और फिर्रात भर कभी फुर एलिज़ याँ फिर झूमते थिरकते वाल्ज़ जागने लग जाएँ ... लाजवाब रचना है आपकी ... मासूम धडकन और उतनी ही मासूम मुस्कान जैसी ... प्यार और आशीर्वाद ...

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  7. वाह।
    वो अल सुबह का कोहरा......
    ऐसे में इंतजार भी कितना सुहाना लगता है....

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  8. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  9. कोहरे की चादर ओढ़े
    अलसाई सी सुबह
    अधमुंदी पलकों से
    मेरी ही तरह
    तुम्‍हारे आने की
    बाट जोहती है........ ।
    ... manobhavon ka bahut sundar chitrankan..

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  10. सामान्य से बिम्ब में बहुत अच्छा भाव भरा है. इसी कारण चलंत बिम्ब भी नया हो हो हो गया है, जो किसी भी पाठक को प्रभावित किये बिना रह नहीं सकता. इस सुन्दर रचना के लिए अवगत कराने के लिए धन्यवाद.

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  11. डा. रमा द्विवेदी

    कोहरे की चादर ओढ़े
    अलसाई सी सुबह
    अधमुंदी पलकों से
    मेरी ही तरह
    तुम्‍हारे आने की
    बाट जोहती है........
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... रश्मि जी को बहुत -बहुत बधाई....

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  12. वाह ...बहुत ही बढि़या।

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  13. कोहरे की चादर में
    दोहरा हुआ है
    मन का ये कोना
    कबसे अकेला
    सबसे अकेला ...

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