Tuesday, December 6, 2011

वृक्ष और लता

टटोलती हू्ं खुद को
कई बार,
झांकती हूं अपने अंदर
और पूछती हूं
अक्‍सर
खुद से ये सवाल.......
कि‍ जो रि‍श्‍ता है
हमारे बीच
वो प्‍यार का है,
समर्पण का
या
वृक्ष और लता का..........
वो कौन सा
सेतु है
जो बांध गया हमें
हम तो
दो अलग राहों के
राही थे....
न हमारी मंजि‍ल थी
कभी एक सी, और
न रास्‍ते
फि‍र
इस मोड़ पर आकर
हम कैसे मि‍ल गए.....
ये भी सच है
कि‍ न कभी तुमने
दी आवाज मुझे
न मैंने तुम्‍हारी ओर
कदम बढ़ाए
बस दो खामोश नि‍गाहें
सरे राह
यूं ही टकराए
फि‍र......
ये कैसा करि‍श्‍मा   है
कि‍ आज हम
बन गए हैं
एक-दूजे के साए
अगर प्‍यार है
तो बहने दो.....
नदी को सागर से
मि‍लने दे....
मगर
वृक्ष और लता हैं
तो साथ कि‍तना
प्‍यार कैसा
ये तो बस
समय का खेल है।
आज जुड़े हैं
कल टूट जाएंगे
कि‍स्‍मत के सि‍तारे
हमसे रूठ जाएंगे....
तब क्‍या
फि‍जां में गूंजता रहेगा
एक अनुत्‍तरि‍त
सवाल......
जरूरत को प्‍यार के नाम का
जामा क्‍यों पहनाया
जी ही लेते
जि‍स हाल में थे
देना ही था दर्द
तो एक नया रि‍श्‍ता
क्‍यों बनाया ??????

12 comments:

  1. ये सही है की रिश्ते जरूरत से ही बनते हैं पर इसमें प्यार कब आ जाता है पाया ही नहीं चलता ... औरत ये प्यार ही दर्द दे जाता है ... लाजवाब रचना है ....

    ReplyDelete
  2. जरूरत को प्‍यार के नाम का
    जामा क्‍यों पहनाया
    जी ही लेते
    जि‍स हाल में थे
    देना ही था दर्द
    तो एक नया रि‍श्‍ता
    क्‍यों बनाया ?????………अब कहने को क्या बचा?

    ReplyDelete
  3. व्रक्ष और लता का रिश्ता भी तो ऐसा ही है यदि एक न हो तो दूसरा अधूरा है। खूबसूरत एवं सार्थक रचना समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

    ReplyDelete
  4. देना ही था दर्द
    तो एक नया रि‍श्‍ता
    क्‍यों बनाया ??????
    vishwaash mein hee to
    vishvaas ghaat hotaa

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर कोमल भावनाओं की भावाव्यक्ति बधाई

    ReplyDelete
  6. जरूरत को प्‍यार के नाम का
    जामा क्‍यों पहनाया
    जी ही लेते
    जि‍स हाल में थे
    देना ही था दर्द
    तो एक नया रि‍श्‍ता
    क्‍यों बनाया ?????

    बहुत खूब. शायद आजकल ऐसा ही होता है.

    ReplyDelete
  7. भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है यह रचना।
    अहसास एक ऐसा तजुर्बा है जिसके सहारे किसी भी रिश्ते को ताजिंदगी जिया जा सकता है।

    ReplyDelete
  8. जरूरत को प्‍यार के नाम का
    जामा क्‍यों पहनाया
    जी ही लेते
    जि‍स हाल में थे
    देना ही था दर्द
    तो एक नया रि‍श्‍ता
    क्‍यों बनाया ?????? waah

    ReplyDelete
  9. जरूरत को प्‍यार के नाम का
    जामा क्‍यों पहनाया
    जी ही लेते
    जि‍स हाल में थे
    देना ही था दर्द
    तो एक नया रि‍श्‍ता
    क्‍यों बनाया ??????

    एकदम सटीक रेखांकन ..... बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  10. हौसला बढ़ाने के लि‍ए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रि‍या....

    ReplyDelete

अगर आपने अपनी ओर से प्रतिक्रिया पब्लिश कर दी है तो थोड़ा इंतज़ार करें। आपकी प्रतिक्रिया इस ब्लॉग पर ज़रूर देखने को मिलेगी।