Sunday, December 4, 2011

आंखों का धोखा

आंसुओं ने धोया
दि‍ल का दर्द
या तुम्‍हारी बातों ने
पता नहीं...
मगर
तन्‍हा, उदास शाम में अब
एक मुस्‍कराहट सी फूटी है
तुम्‍हारी गैर-मौजूदगी का
होगा ऐसा असर
अब तक मालूम न था
ऐसी खाली-खाली सी थी फि‍जा
जैसे जिंदगी मुझसे रूठी है..।
बेमुरव्‍वत इश्‍क में
आंखों को धोखा होता है
नजरें  उठती हैं जि‍धर भी
तुम ही तुम नजर आते हो
जानते हैं हम मगर
ये बात सारी झूठी है......।

9 comments:

  1. वाह ...बहुत ही बढि़या अच्‍छे शब्‍द संयोजन के साथ सशक्‍त अभिव्‍यक्ति।

    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  2. Waah !! Khoobsurat rachna .
    Yaaden badi satati hain.

    Aabhaar....!!

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  3. बहुत डूब कर लिखा है।

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  4. हम इसे पढ़ रहे हैं और देव साहब के विषय में सोच रहे हैं ... आपकी कविता अकेले पढ़ी जा सकती ... अपनों के साथ पढ़ी जा सकती और सपनों के साथ पढ़ी जा सकती हैं ...लिखती रहें ... आशीर्वाद ...

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  5. बेमुरव्‍वत इश्‍क में
    आंखों को धोखा होता है
    नजरें उठती हैं जि‍धर भी
    तुम ही तुम नजर आते हो
    Nice

    mohabbat mein
    nirantar aisaa hee
    hotaa hai
    jisne kiyaa wo
    hee jaantaa hai

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