Wednesday, November 30, 2011

गवारा न हुआ.....

हमने कहा कि‍ जाओ, उठकर चल दि‍ए
मुड़कर एक दफा देखना भी गवारा न हुआ
हर शख्‍स को ‍कि‍या जाते हुए सलाम
इक नजर की ख्‍वाहि‍श थी, वो भी हमारा न हुआ
ऐसी बेरूखी क्‍यों, क्‍यूंकर हैं खफा हमसे
कैसे जि‍एं, जब आपकी उल्‍फत का सहारा न हुआ
बहुत चाहा कि‍ मुस्‍कराएंगे उनकी रूख्रसत के बाद मगर
पलकों पे आंसुओं को ठहरना गवारा न हुआ....।

11 comments:

  1. bahut khoob. bhavnaon ki manbhavan abhivyakti.

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  2. बहुत चाहा कि‍ मुस्‍कराएंगे उनकी रूख्रसत के बाद मगर
    पलकों पे आंसूओं को ठहरना गवारा न हुआ....।

    दिल से लिखी गयी और दिल पर असर करने वाली रचना , बधाई

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  3. सुंदर नज़्म
    बधाई !

    मेरी नई कविता "अनदेखे ख्वाब"

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  4. jyaadaa nahee kiyaa unhone
    sirf zamaane kaa dastoor nibhaayaa
    mohabbat mein
    rone waalon mein
    ek naam aur jud gayaa

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  5. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-715:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  6. वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब

    संजय भास्कर
    आदत्....मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com/

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  7. वाह! बहुत खूब...
    बढ़िया प्रस्तुति...
    सादर...

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  8. इतनी सारी टिप्पणियां बताती है कि आप की रचनाएं वैसे ही दिलों को छूती हैं जैसा हमें लगता है ... राइम सी करती ग़ालिब साहब कि गज़ल याद आ रही है ... 'दहर में नक़्शे वफ़ा वज हे तस्सल्ली न हुआ , है ये वो लफ्ज़ जो शर्मंद ए मानी न हुआ , किस से मेह्रूमिये किस्मत की शिकायत कीजे , हमने चाहा था कि मर जाएँ सो वो भी न हुआ ...'आपको इतनी अच्छी बात लिखने के लिए बधाई ... प्यार और आशीर्वाद ...

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  9. बेहद खूबसूरत नज़्म. आभार.

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