हमने कहा कि जाओ, उठकर चल दिए
मुड़कर एक दफा देखना भी गवारा न हुआ
हर शख्स को किया जाते हुए सलाम
इक नजर की ख्वाहिश थी, वो भी हमारा न हुआ
ऐसी बेरूखी क्यों, क्यूंकर हैं खफा हमसे
कैसे जिएं, जब आपकी उल्फत का सहारा न हुआ
बहुत चाहा कि मुस्कराएंगे उनकी रूख्रसत के बाद मगर
पलकों पे आंसुओं को ठहरना गवारा न हुआ....।
मुड़कर एक दफा देखना भी गवारा न हुआ
हर शख्स को किया जाते हुए सलाम
इक नजर की ख्वाहिश थी, वो भी हमारा न हुआ
ऐसी बेरूखी क्यों, क्यूंकर हैं खफा हमसे
कैसे जिएं, जब आपकी उल्फत का सहारा न हुआ
बहुत चाहा कि मुस्कराएंगे उनकी रूख्रसत के बाद मगर
पलकों पे आंसुओं को ठहरना गवारा न हुआ....।
11 comments:
bahut khoob. bhavnaon ki manbhavan abhivyakti.
बहुत चाहा कि मुस्कराएंगे उनकी रूख्रसत के बाद मगर
पलकों पे आंसूओं को ठहरना गवारा न हुआ....।
दिल से लिखी गयी और दिल पर असर करने वाली रचना , बधाई
सुंदर नज़्म
बधाई !
मेरी नई कविता "अनदेखे ख्वाब"
Vaah!
jyaadaa nahee kiyaa unhone
sirf zamaane kaa dastoor nibhaayaa
mohabbat mein
rone waalon mein
ek naam aur jud gayaa
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-715:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
संजय भास्कर
आदत्....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/
वाह! बहुत खूब...
बढ़िया प्रस्तुति...
सादर...
इतनी सारी टिप्पणियां बताती है कि आप की रचनाएं वैसे ही दिलों को छूती हैं जैसा हमें लगता है ... राइम सी करती ग़ालिब साहब कि गज़ल याद आ रही है ... 'दहर में नक़्शे वफ़ा वज हे तस्सल्ली न हुआ , है ये वो लफ्ज़ जो शर्मंद ए मानी न हुआ , किस से मेह्रूमिये किस्मत की शिकायत कीजे , हमने चाहा था कि मर जाएँ सो वो भी न हुआ ...'आपको इतनी अच्छी बात लिखने के लिए बधाई ... प्यार और आशीर्वाद ...
बेहद खूबसूरत नज़्म. आभार.
dil ki gaharayi se likhi bahut hi sundar rachana hai...
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