Sunday, November 20, 2011

तुम्‍हारी याद

बन के मुस्‍कान खि‍लती है होठों पर
तुम्‍हारी याद
कभी आंखों में, कभी सांसों में बनकर खुश्‍बू
उतरती है तुम्‍हारी याद
एक लम्‍हे को सदि‍यों में बदलने का हुनर
आता है तुम्‍हें
कभी गलि‍यों में कभी छत पर धूप बनकर
उतरती है तुम्‍हारी याद।

5 comments:

अंजू शर्मा said...

और यादों में खोकर हमें पुकारने और उन्हें बांटने का हुनर तुम्हे खूब आता है रश्मि, प्यारी सी कविता के लिए बधाई......

ashokjairath's diary said...

हर बार आपकी बात एक इकाई सी ही होती है ... बारिश कुछ नहीं होती न ... बरसती हुई एक एक बूँद सामोहिक रूप से बरसात कहलाती है ... आपकी हर बात वही बूंदों सी इकाई है ... बधाई इस खूबसूरत बात के लिए ...

Anamikaghatak said...

bahut sudar kavita racha hai apne...likhte rahiye

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!

Chandu said...

~~~~चंद यादें ही काफी होती हैं एक उम्र गुजारने की खातिर~~~~यादों के साथ चंद उम्मीदें जो जुड़ी होती हैं~~~~

मैं तो फैन हूँ आपकी कविताओं का .. आपका ब्लॉग बरबस अपनी और खिचता हैं मुझे ..