रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Sunday, November 20, 2011
तुम्हारी याद
बन के मुस्कान खिलती है होठों पर
तुम्हारी याद
कभी आंखों में, कभी सांसों में
बनकर खुश्बू
उतरती है तुम्हारी याद
एक लम्हे को सदियों में बदलने का हुनर
आता है तुम्हें
कभी गलियों में कभी छत पर धूप बनकर
उतरती है तुम्हारी याद।
हर बार आपकी बात एक इकाई सी ही होती है ... बारिश कुछ नहीं होती न ... बरसती हुई एक एक बूँद सामोहिक रूप से बरसात कहलाती है ... आपकी हर बात वही बूंदों सी इकाई है ... बधाई इस खूबसूरत बात के लिए ...
5 comments:
और यादों में खोकर हमें पुकारने और उन्हें बांटने का हुनर तुम्हे खूब आता है रश्मि, प्यारी सी कविता के लिए बधाई......
हर बार आपकी बात एक इकाई सी ही होती है ... बारिश कुछ नहीं होती न ... बरसती हुई एक एक बूँद सामोहिक रूप से बरसात कहलाती है ... आपकी हर बात वही बूंदों सी इकाई है ... बधाई इस खूबसूरत बात के लिए ...
bahut sudar kavita racha hai apne...likhte rahiye
बहुत उम्दा!!
~~~~चंद यादें ही काफी होती हैं एक उम्र गुजारने की खातिर~~~~यादों के साथ चंद उम्मीदें जो जुड़ी होती हैं~~~~
मैं तो फैन हूँ आपकी कविताओं का .. आपका ब्लॉग बरबस अपनी और खिचता हैं मुझे ..
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