दिल में है बेचैनी बहुत
साथ ही
उलझन है बेशुमार
ये कुछ पाने की है खुशी
या खोने का है गम.......
मिलन का है दिल को इंतजार
या जुदाई का है आगाज
जाने क्या है.....
जो दिल में उठती है
एक लहर की तरह
चीरती है दिल को
किसी नश्तर की तरह
मगर
समझ नहीं पाती
कि इस किनारे लगूं
या.....पार जा उतरूं
क्या करूं
जो कुछ पल सुकून के मिले
समेट लूं
या खोल दूं बंद मुट़ठी
रेत की तरह
मुट़ठियों से रिसने से अच्छा है
हवाओं के साथ हो लूं
फिर चाहे
जिस सिम्त जा लगे
जिंदगी का सफीना..........।
साथ ही
उलझन है बेशुमार
ये कुछ पाने की है खुशी
या खोने का है गम.......
मिलन का है दिल को इंतजार
या जुदाई का है आगाज
जाने क्या है.....
जो दिल में उठती है
एक लहर की तरह
चीरती है दिल को
किसी नश्तर की तरह
मगर
समझ नहीं पाती
कि इस किनारे लगूं
या.....पार जा उतरूं
क्या करूं
जो कुछ पल सुकून के मिले
समेट लूं
या खोल दूं बंद मुट़ठी
रेत की तरह
मुट़ठियों से रिसने से अच्छा है
हवाओं के साथ हो लूं
फिर चाहे
जिस सिम्त जा लगे
जिंदगी का सफीना..........।
6 comments:
मुट़ठियों से रिसने से अच्छा है
हवाओं के साथ हो लूं
गहन भावों की अभिव्यक्ति.......
उलझने हैं तो सुलझेंगी भी
सुन्दर भाव
रेत की तरह
मुट़ठियों से रिसने से अच्छा है
हवाओं के साथ हो लूं
फिर चाहे
जिस सिम्त जा लगे
जिंदगी का सफीना..........।
बहुत अच्छा, कुछ तो है जो आपको तराश रहा है. तरशना ही तो जीवन की साधना है. बिना तरशे इस तरह के भाव पैदा ही नहीं होते.
कशमकश को बखूबी उकेरा है।
आपने अपने मन के अनादर उठते कई ऐसे सवालों को जो अकसर लगभग सभी के अंदर उठा करते हैं बड़ी खूबसूरती के साथ उकेरा है।
समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
Waah! Behtreen!
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