वह एक सुरमई शाम थी.....
जिस दिन कहा था तुमने
तुम मेरी चाहत हो
इस जीवन की
अंतिम चाहत......
जब से चाहा है तुम्हें
नहीं लगता कोई और
इन आंखों को अच्छा।
मुझे याद है
वह एक सुरमई शाम थी.....
तुम आंखों में आशाएं भर
देख रहे थे मुझे
मौन रहकर कर रहे थे
प्रेम निवेदन....
और मैं चकित थी
तुम्हारा यह रूप देखकर
तुम वही हो न....
जिसे
बरसों से जानती हूं
पहचानती हूं मैं
तो उन आंखों में छिपा प्यार
क्यों नहीं देख पाई
तुम्हारे
अक्सर साथ होने को
मात्र एक संयोग समझा, मगर
मुझे याद है
वह एक सुरमई शाम थी
जब बेहद बेचैन देख तुम्हें
पूछा था हाल तुम्हारा
तब तुमने कहा था
अर्निणय में झूल रहा हूं.....
तब भी
क्या मालूम था मुझे
कि वो तुम्हारे लिए
फैसले की घड़ी थी
और मैं
न जान पाई थी तुम्हारे
मन की पीड़़ा
अब जब
वाकिफ हूं तुम्हारे दिल की
हर एक बात से
मगर....
अब बदल गया है सब कुछ
तुम...मैं...और ये हालात
हां....मुझे याद है
वह एक सुरमई शाम थी।
3 comments:
एहसास की सुन्दर रचना ...
आह ! ऐसा क्यो होता है जब चाहत होती है तो जुबान खामोश हो जाती है और जब शब्द होते है तो चाहत ही बदल जाती है………………मेरे दिल को छू गये आपकी रचना के भाव्……………बहुत ही सुन्दर्…………कहीं देर ना हो जाये उससे पहले कह देना चाहिये।
अभिव्यक्ति और एहसास की सुन्दर रचना
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