रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Thursday, October 13, 2011
चांद रात में मुलाकात
ख्वाब है ये बरसों पुराना
कि चांद रात में उनसे मुलाकात हो
लब हमारे कुछ न कहें
और निगाहों से उनसे बात हो
हम बैठे रहे सर को झुकाए
वो दामन में रहे हमारे चेहरा छुपाए
ताउम्र में एक दिन तो ऐसा आए
जब हम हों....और ऐसी रात हो।
2 comments:
खूबसूरत एहसास/खयाल ..
bahut umda likhti hai aap. aapke man ki komalta aapki kavitao se bhi jhalkti hai...ye dard kaha se paaya hai..lajwaab
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