एक चिट़ठी बरसों पुरानी
मुड़ी-तुड़ी, बेरंग पीली सी
पड़ी थी बक्से में
.....एकदम नीचे
जब खोला, तो उसके शब्द थे
मोतियों से गुथे
भावों से भरे
कहीं इसरार---
कभी मनुहार
थम गया वक्त
मुड़ी-तुड़ी, बेरंग पीली सी
पड़ी थी बक्से में
.....एकदम नीचे
जब खोला, तो उसके शब्द थे
मोतियों से गुथे
भावों से भरे
कहीं इसरार---
कभी मनुहार
थम गया वक्त
लौट गया....बरसों पहले
उन पलों में
जब तेरा-मेरा इक नाता था
कुछ कहा-कुछ अनकहा
उन पलों में
जब तेरा-मेरा इक नाता था
कुछ कहा-कुछ अनकहा
हमारे बीच अक्सर रह जाता था
और उस अनकहे को
शब्दों की माला बना
चिट़ठियों में पिरोते थे
और इन्हें पाकर
एकांत में हम
खूब रोते थे
संभालकर रखा है
और उस अनकहे को
शब्दों की माला बना
चिट़ठियों में पिरोते थे
और इन्हें पाकर
एकांत में हम
खूब रोते थे
संभालकर रखा है
चिट़ठियों में अब तक
अपने आंसू--तुम्हारा प्यार
आज जब
बरसों बाद खोला वो
पुराना बक्सा
तुम्हारी यादें ताजा हो गईं
क्या हुआ जो अब
हममें नहीं रहा कोई नाता
वो चिट़ठी तो है मेरे पास
मुड़ी-तुड़ी, पीली उदास सी
अपने आंसू--तुम्हारा प्यार
आज जब
बरसों बाद खोला वो
पुराना बक्सा
तुम्हारी यादें ताजा हो गईं
क्या हुआ जो अब
हममें नहीं रहा कोई नाता
वो चिट़ठी तो है मेरे पास
मुड़ी-तुड़ी, पीली उदास सी
खो चुकी तुम्हारी याद सी .....
No comments:
Post a Comment
अगर आपने अपनी ओर से प्रतिक्रिया पब्लिश कर दी है तो थोड़ा इंतज़ार करें। आपकी प्रतिक्रिया इस ब्लॉग पर ज़रूर देखने को मिलेगी।