अवश हूं
मैं अवश हूं
स्वयं को रोक नहीं पाती
नहीं चाहती
मगर भी....
खिंची चली जाती हूं
तुम्हारी ओर,
जानती हूं
तुम और मैं
बहुत अलग हैं
और है
न पाटी जाने वाली
बेहिसाब दूरियां
मगर
मन ये कब सोचता है
वह तो घूमता है
तुम्हारे ही इर्द-गिर्द
और मैं
अवश हो
तुम्हें ही ढूंढती हूं
अपने करीब....
kahaan se laati hain itni khoobsoorat baat ... aise umda kathya ...
ReplyDeletebahut khoobsoorat ...