Friday, July 1, 2011

वह चेहरा


...अब तक कुछ शब्‍द थे
जो
आंखों के आगे
तैरा करते थे
आकारवि‍हीन शब्‍द
जो
सपनों का
जाल बुना करते थे
तुमने उन शब्‍दों को
आकृति‍ में बदल डाला
अब
एक चेहरा है
जो
बार-बार आंखों के आगे
उभरता है
मैं भागती हूं दूर उससे
वो मुझमें
और अधि‍क उतरता है ....

1 comment:

ashokjairath's diary said...

शब्दों का अकार ले दिखने लग्न परिक्व चेतना और जागरूकता के नये मापदंड बनाता है ... क्या वह स्थिति आयेगी ...

जहां देखता हूँ वहीं तू ही तू है ...