रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Tuesday, March 29, 2011
किस्मत
कोई चेहरा उभरता है आंखों के सामने और बनते-बनते बिगड़ जाता है। मालूम नहीं क्यों टूटता है सपना वही जिसे बहुत प्यार से देखा हो अपनी कमनसीबी मिलकर खो जाता है सब दोष किसका मेरा या मेरी किस्मत का?
सुन्दर ... सपने और उम्मीदें आपको बनाते हैं वैसा जैसा आप हों ... कोई भी शख्स वैसा नहीं होता जैसा वह दिखता है ... क्या सुना नहीं ...
ReplyDeleteहर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जब भी किसी को देखना सौ बार देखना
छोटी छोटी छोटी बातें
ReplyDeleteमनके हों जैसे माला की
रेत से जैसे चुन चुन कर लाई हों मोती
सीपी शंख और कई छोटे से पत्थर
इन सब का
कोलाज बनाना
ऐसा जैसा नहीं बना हों कभी कहीं भी