रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Monday, May 10, 2010
क्या था सच
अहसास बेमानी थे या शब्द पता नहीं, किन भावों को पिरोकर शब्दों का मोती बनाया था, आज पलटती हूं गुजरा लम्हा तो लगता है वो शब्द, वो खत जिनमें सिर्फ अहसास समाए हैं, क्या वो सच था या सिर्फ कल्पनाएं हैं।
भूतकाल तो भूत के सामान होता है.... भविष्यकाल कल्पनाओं पर टिका होता है......वर्तमान ही सच होता है ... अब कविता पुनः पढ़कर तय होगा की की वो कल्पना थी या सच......
अहसासों को कसौटी पर परखती प्रशंसनीय रचना
ReplyDeleteलगा जैसे एक ही सांस में पूरी रचना आपने सुना दी। मैं बहुत खूब लिखकर आपकी तारीफ करता हूं। वाकई अच्छी रचना।
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeleteaapki kavitao mai sach hi hai, ek ashia sach jo samaj ke liyai hai.
ReplyDeleteek acchha ahsas.
ReplyDeletebahut acchhi rachna
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसच में कभी कभी अतीत के पन्ने पलटने पर ये महसूस होता है
ReplyDeleteबहुत कोमलता से लिखे हैं एहसास.....सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपके अहसासों ने मन को छू लिया।
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ।
--------
कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
अति उत्तम
ReplyDeleteभूतकाल तो भूत के सामान होता है.... भविष्यकाल कल्पनाओं पर टिका होता है......वर्तमान ही सच होता है ... अब कविता पुनः पढ़कर तय होगा की की वो कल्पना थी या सच......
ReplyDelete