Sunday, February 21, 2010

कि‍तना गुजर गया वक्‍त


कि‍तना गुजर गया वक्‍त
क्‍या कहूं
शब्‍द गुम हो गए हैं
या, मैं खो गई हूं।
ढूंढ रही कोई सि‍रा
जि‍से थामकर
अपने ही वजूद को
अपने अंदर से नि‍काल सकूं,
मान लूं, जता सकूं
कि‍ मेरे अंदर
अहसास अब भी
करवटें लेता है
कि‍ मैं जिंदा हूं.....

8 comments:

  1. सुन्दर भावाव्यक्ति!

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  2. जिन्दगी की खोज इस शहर के कोलाहल में
    सुन्दर भाव

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  3. खुद को व्यक्त करने की छटपटाहट मुखरित है रचना में
    सुन्दर रचना

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  4. jinda hone ka ahsas hi
    vjood hai
    mera tumhara
    priyhvi ka jl ka
    pvn ka aag ka
    aurv yh aag hi to
    jindgi hai
    is aag ko shejna hi
    pdeta hai apne hone ke liye
    apne vjood ke liye
    dr.vedvyathit@gmail.com
    http;//sahityasrajakved.blogspot.com

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  5. Shakhsiyat hamesha amit hoti hai...
    wellcome back.

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  6. मन के भावों को मूर्त रूप देने के प्रयास में रची गई सुंदर रचना - हार्दिक शुभकामनाएं इस आशा और विश्वास के साथ कि आपके भाव और अहसासों से हम सब भी रु-बरु होंगे.

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  7. वाह ! कमाल का लिखा है, आपकी कई रचनाएँ आज पढ़ी, बहुत ही कम शब्दों में आप अपनी बात कह देती है, मेरा यही मानना है की कविता जितनी छोटी हो अच्छा है, अब तक आपके ब्लॉग से दूर रहा अफ़सोस है

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  8. बहुत अच्छा लिखती हैं आप

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