रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Sunday, February 21, 2010
कितना गुजर गया वक्त
कितना गुजर गया वक्त क्या कहूं शब्द गुम हो गए हैं या, मैं खो गई हूं। ढूंढ रही कोई सिरा जिसे थामकर अपने ही वजूद को अपने अंदर से निकाल सकूं, मान लूं, जता सकूं कि मेरे अंदर अहसास अब भी करवटें लेता है कि मैं जिंदा हूं.....
jinda hone ka ahsas hi vjood hai mera tumhara priyhvi ka jl ka pvn ka aag ka aurv yh aag hi to jindgi hai is aag ko shejna hi pdeta hai apne hone ke liye apne vjood ke liye dr.vedvyathit@gmail.com http;//sahityasrajakved.blogspot.com
मन के भावों को मूर्त रूप देने के प्रयास में रची गई सुंदर रचना - हार्दिक शुभकामनाएं इस आशा और विश्वास के साथ कि आपके भाव और अहसासों से हम सब भी रु-बरु होंगे.
वाह ! कमाल का लिखा है, आपकी कई रचनाएँ आज पढ़ी, बहुत ही कम शब्दों में आप अपनी बात कह देती है, मेरा यही मानना है की कविता जितनी छोटी हो अच्छा है, अब तक आपके ब्लॉग से दूर रहा अफ़सोस है
सुन्दर भावाव्यक्ति!
ReplyDeleteजिन्दगी की खोज इस शहर के कोलाहल में
ReplyDeleteसुन्दर भाव
खुद को व्यक्त करने की छटपटाहट मुखरित है रचना में
ReplyDeleteसुन्दर रचना
jinda hone ka ahsas hi
ReplyDeletevjood hai
mera tumhara
priyhvi ka jl ka
pvn ka aag ka
aurv yh aag hi to
jindgi hai
is aag ko shejna hi
pdeta hai apne hone ke liye
apne vjood ke liye
dr.vedvyathit@gmail.com
http;//sahityasrajakved.blogspot.com
Shakhsiyat hamesha amit hoti hai...
ReplyDeletewellcome back.
मन के भावों को मूर्त रूप देने के प्रयास में रची गई सुंदर रचना - हार्दिक शुभकामनाएं इस आशा और विश्वास के साथ कि आपके भाव और अहसासों से हम सब भी रु-बरु होंगे.
ReplyDeleteवाह ! कमाल का लिखा है, आपकी कई रचनाएँ आज पढ़ी, बहुत ही कम शब्दों में आप अपनी बात कह देती है, मेरा यही मानना है की कविता जितनी छोटी हो अच्छा है, अब तक आपके ब्लॉग से दूर रहा अफ़सोस है
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखती हैं आप
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