मन में बोती है
असंतुष्िट का बीज
और
निकलता है पौध
अलगाव का
मन में फिर
मच जाता है द्वंद्व
और
मिलता है
आंसुओं को न्योता
आती हैं यादें
जाती है
मन
किंकर्तव्यविमूढ़,
तभी 'जिंदगी' को
मिलता है
तुम्हारा खत
और
उठता है फिर
भावनाओं का
ज्वार
लेता है प्यार
हृदय में हिलोरें
और
दबी यादें
सर उठाती हैं
बुलाती हैं
तुम्हें........
1 comment:
बहुत सुन्दर भाव।
उठता है फिर
भावनाओं का
ज्वार
लेता है प्यार
हृदय में हिलोरें
और
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