Tuesday, March 11, 2008

तुम्‍हारा खत

नि‍त नई पीड़ा
मन में बोती है
असंतुष्‍ि‍ट का बीज
और
नि‍कलता है पौध
अलगाव का

मन में फि‍र
मच जाता है द्वंद्व
और
मि‍लता है
आंसुओं को न्‍योता

आती हैं यादें
जाती है
मन
किंकर्तव्यविमूढ़,

तभी 'जिंदगी' को
मि‍लता है
तुम्‍हारा खत
और

उठता है फि‍र
भावनाओं का
ज्‍‍वार
लेता है प्‍यार
हृदय में हि‍लोरें
और

दबी यादें
सर उठाती हैं
बुलाती हैं
तुम्‍हें........

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर भाव।

उठता है फि‍र
भावनाओं का
ज्‍‍वार
लेता है प्‍यार
हृदय में हि‍लोरें
और