कल
बदल जाएगा
कैंलेंडर में महीना
और बदल जाएगी
उसमें छपी
तस्वीर भी,
मगर मैं
नहीं बदलूंगी
रहूंगी
वहीं की वहीं
जहां
कई बरसों से
टंगी हूं
मुझे बदलने की
इच्छा
कइयों ने की
और
मेरा मन भी
चाहता है
बदलाव,
मगर ये संभव
नहीं
क्योंकि
मैं कैलेंडर नहीं जो
किसी की इच्छानुसार
बदल जाऊँ
मैं तो वो
सामान हूं
जो
टूट-फूट जाता है
तो घर से बाहर
फेंक दिया जाता है
इसे बदलने की
जहमत
कोई नहीं उठाता
बदल जाएगा
कैंलेंडर में महीना
और बदल जाएगी
उसमें छपी
तस्वीर भी,
मगर मैं
नहीं बदलूंगी
रहूंगी
वहीं की वहीं
जहां
कई बरसों से
टंगी हूं
मुझे बदलने की
इच्छा
कइयों ने की
और
मेरा मन भी
चाहता है
बदलाव,
मगर ये संभव
नहीं
क्योंकि
मैं कैलेंडर नहीं जो
किसी की इच्छानुसार
बदल जाऊँ
मैं तो वो
सामान हूं
जो
टूट-फूट जाता है
तो घर से बाहर
फेंक दिया जाता है
इसे बदलने की
जहमत
कोई नहीं उठाता
वक़्त बदलता है आदतें बदलती हैं लेकिन सच नहीं बदलता और न ही कभी बदला जा सकेगा... सुन्दर एवं भावपूर्ण काव्य!!
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई बताती कविता। ब्धाई
ReplyDeletebahut sundar rashmi ji,insani man koi calendar nahi jo har maah badal jaye,awesome
ReplyDeletesahi kha apney .......din maheney badlney sey hum thorey he badaltey hai
ReplyDeleteaapki is kavita se aaj ke vikral samay ka pata chalta hai. bhavnaon ka jo rang aapne bhara hai wah bahul tarif ke kabil hai.
ReplyDeletesudhir sharma
vaibhav prakashan
raipur