निर्गंध फूलों से
सजता रहा घर
खुश्बू नहीं तो क्या
तृप्ति तो है इन आंखों को
बबूलों से
उलझ गई जिंदगी
मगर हाथ छूते रहे
गुलाब के शाखों को
कच्ची डगर
नहीं पहुंचाती मंजिल को
अच्छा किया, तोड़ लिया नाता
सिर्फ याद बनाया इन राहों को ।
सजता रहा घर
खुश्बू नहीं तो क्या
तृप्ति तो है इन आंखों को
बबूलों से
उलझ गई जिंदगी
मगर हाथ छूते रहे
गुलाब के शाखों को
कच्ची डगर
नहीं पहुंचाती मंजिल को
अच्छा किया, तोड़ लिया नाता
सिर्फ याद बनाया इन राहों को ।
शब्द उपमा का अच्छा खेल...
ReplyDeletebahut hi sundar
ReplyDelete