Friday, February 29, 2008

याद राहों की


नि‍र्गंध फूलों से
सजता रहा घर
खुश्‍बू नहीं तो क्‍या
तृप्‍ति‍ तो है इन आंखों को

बबूलों से
उलझ गई जिंदगी
मगर हाथ छूते रहे
गुलाब के शाखों को

कच्‍ची डगर
नहीं पहुंचाती मंजि‍ल को
अच्‍छा कि‍या, तोड़ लि‍या नाता
सि‍र्फ याद बनाया इन राहों को ।

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