Sunday, October 29, 2023

ओह अक्तूबर !

ओह अक्तूबर ! 

कितनी यादें लेकर आते हो साथ
मन तोला-माशा होता है।


बिस्तर पर चाँदनी का सोना
हरसिंगार का खिलना-महकना-गिरना

समेटना हथेलियों में तुम्हारी याद की तरह
उन नाजुक फूलों को 

राग "मालकौंस"
कोई गाता है दूर, बहुत दूर से 

मन को अतीत में खींच ले ही जाता है
कितना भी रोके कोई..
 
ओह अक्तूबर ....
तुम आए फिर....आओ, थम जाओ। 


6 comments:

  1. आदरणीया मैम, सादर प्रणाम । शरद ऋतु की शोभा वर्णन करती अत्यंत सुंदर रचना। शरद और वर्षा प्रकृति के दो सबसे सुंदर ऋतुएं होतीं हैं जब माता प्रकृति अपने मनोहरतं रूप मेकिं होती है । प्रकृति का यह रूप देख कर मन हर्षित होता है तो बहुत सी सुखद स्मृतियाँ और अनुभूतियाँ सजीव हो उठतीं हैं । आपकी रचना ने शांति और आनंद की अनुभूति दी । आभार एवं पुनः प्रणाम ।

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  2. वाह! खूबसूरत सृजन।

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  3. ओह अक्तूबर ....
    तुम आए फिर....आओ, थम जाओ।

    kya baat hai apritam

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