खुशियां तलाश रही हूं बारिश की बूंदों में, जो बरस कर ठहर गई हैं फूलों और पत्तियों में...
बारिश की बौछार से गुम हो गए पहाड़ को तलाशती है निगाहें और जाकर ठहर जाती है एक बच्ची के पावों में जो पड़ोस में छोटे से घर के दरवाजे का पल्ला पकड़े हुए बाहर पायल वाले नाजुक पैर को ओसारे से बरसती - टपकती बूंदों के नीचे धर खिलखिला रही है।
बारिश से धुल रहा मन का अवसाद....
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-08-2022) को "नागपञ्चमी आज भी, श्रद्धा का आधार" (चर्चा अंक-4510) पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सच ये बच्चो सरीखे खिलखिलाते फूल सच में अवसाद कम करने के लिए काफी हैं
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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